पिघला-पिघला पारा हूं मैं
शीर्ष ध्रुव का तारा हूं मैं
तोडूं मैं कैसे भला
इस आसमां से वास्ता
उत्तर का उत्तर मैं सनातन
आए बीते कितने सावन
धर्म मेरा कर्म मेरा
टिमटिमाना जगमगाना
जो भूल कर मैं मान लूं
कि बादलों में खो गया मैं
राह मुझको देखकर है
राह अपनी खुद बुझाना
खोए अभी हैं कई मुसाफ़िर
कैसे भला मैं भटक जाऊं
चमचमाकर रोशनी से
रास्ता है खुद बताना
विश्व का विश्वास हूं मैं
भय का है ना अंश भीतर
कई युगों तक अब तो बस है
चमकना मेरा मुकद्दर
Leave a Reply