आख़िर फल मुझे क्यूँ मिलता नही
ऐसा रहा हरदम तुम्हारा रवैय्या
पर जो धक्का तुम लगाओ ना सही
तो भला क्या काम आएगा पहिया?
प्रतिभा है तुम्हे भेंट में मिली
पर मेहनत करना है तुम्हारी ज़िम्मेदारी
जो सत्य, सत्त्व और समर्पण मिले
तो साकार होंगी कोशिशें सारी
जो दीप भले तेल से छलके
भीनी सी हो सूत की बाती
जो मन में ज्वाला न जागे
तो कैसे रोशन हो दुनिया सारी?
कस लो कमर, करो तुम परिश्रम
अब पीछे छोड़ो तमस का घेरा
जब कसर रहे न कोई कम
तब ना रहेगा दिया तले अंधेरा
अब उठो और उठाओ तुम्हारा शस्त्र
कलम हो, कुल्हाड़ी हो या हो सितार
बलिदान से संवरेगा हर नक्षत्र
आखिर कर्म से ही होगी तुम्हारी नैय्या पार।
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