अंबर में देखो ज़रा, आज रंग है अपार
मांजे पर मांजा, करता है तीखा वार
धरती ने करवट जो बदली है आज
संक्रांत की खुशी में उड़े पतंगों की फ़ुहार

 

धनवान का बेटा आज पतंग खरीद लाया
सुबह से सांझ तक उल्लास से उड़ाया
छोटी है छत, पर छत उसके सिर पर
एक कटी पतंग पवन उसके छत लाया

 

गरीब का बेटा, आज भी नंगे पैर
हाथ में लाठी लिए करे मोहल्ले की सैर
छत उसका खुला आसमान, कटी पतंग ताकता,
हज़ारो पतंगे लाई देखो पवन की यह मित्रता

 

पतंगे हज़ार है, आज अमीर है गरीब का बेटा,
रात को फिर, आसमान की छत के नीचे लेटा
साल के एक दिन, तक़दीर को वो करता है माफ़,
संक्रांत के दिन मिला उसे,
कटी पतंगों का छोटा सा इंसाफ