चंचल चिकनी सी माटी को
देखो चक्कर कैसे आए
जब भी कुम्हार चिकनी माटी
कोमल हाथों से सहलाए
पहिया रुका
अंगार फुंका
अब पकने की आई बारी
हर थके हुए राही की अब है
प्यास बुझाने की तयारी
तपने की तपस्या से ही
मिला सुराही को वरदान
थकते राही की प्यास बुझाने
की ली है अब उसने ठान
इस सुंदर सी सुराही की
प्यास भी निराली है
जो राही की प्यास पीकर
अपनी ही प्यास बुझाती है
पर एक दिन इस सुराही का भी
निश्चित अंत आना है
माटी की संतान को फिर
माटी में मिल जाना है
पर प्यास की तलाश हो
इस जग में जब तक जारी
पलेंगे कुम्हार,
तपेगी माटी
निकलेंगे घर से कई राही
हर प्यासे की प्यास में
विश्वास है यह पक्का
जीवन जननी और मृत्युदंड का
लगता रहेगा धक्का
जीवन का चलता रहेगा चक्का
जीवन का चलता रहेगा चक्का
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